खामोश मतदाताओं के मन का भेद लेने के लिए हो रही जासूसी
सियासत: कमजोर क्षेत्र की पहचान कर उसी के हिसाब से बना रहे रणनीति
हरिद्वार। उत्तराखंड के चुनावी समर में इस बार माहौल बदला हुआ है। न मुद्दों पर जोर है। न उपलब्धियों का शोर है। मतदाता भी खामोश है। वह फिलहाल अभी खुल नहीं रहा कि किसके पक्ष में मतदान करेगा।
मतदाताओं के झुकाव का बैरोमीटर मानी जाने वाली बड़ी रैलियां भी कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से नहीं हो पा रहीं। ऐसे में उम्मीदवार के साथ ही सभी दलों के चुनावी प्रबंधक बेचैन हैं। वह तरह-तरह से मतदाताओं के मन का भेद लगाने की जुगत कर रहे हैं। सबसे ज्यादा कसरत वीआईपी सीटों पर हो रही है। इसके लिए निष्पक्ष व भरोसेमंद गैर राजनीतिक लोगों का सहारा लिया जा रहा है। मदन कौशिक की सीट हरिद्वार, गणेश गोदियाल की सीट श्रीनगर, मुख्यमंत्री की सीट खटीमा, हरीश रावत की सीट लाल कुआं, कर्नल कोठियाल की सीट कुआं, कर्नल कोठियाल की सीट गंगोत्री, प्रीतम सिंह की सीट चकराता के साथ ही सभी कैबिनेट मंत्रियों की सीटों से भी मतदाताओं के बहुत न खुलने का इनपुट मिल रहा है। पूर्व सीएम हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत और भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी भी चुनावी मैदान में हैं।
यह बात तो सियासी पंडित भी कह रहे हैं कि बहुधा कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाला दोकोणीय मुकाबला आप के आने से कई सीटों पर तिकोना हो चला है। उदाहरण के लिए हरिद्वार जिले में 11 सीटें हैं। मौजूदा आठ सीटों पर भाजपा के सीटिंग विधायकों में छह विधायक फिर से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने झबरेड़ा से देशराज कर्णवाल का टिकट काटकर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राजपाल को मैदान में उतारा है। जबकि खानपुर से कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन का टिकट काटकर उनकी पत्नी रानी देवयानी को दिया है। कांग्रेस से पिरान कलियर, भगवानपुर और मंगलौर से मौजूदा तीनों विधायक चुनाव मैदान में हैं। जिले में मुस्लिम, हिंदू ओबीसी और दलित वोटर बड़े फैक्टर हैं। जातीय वोटरों के ध्रुवीकरण के साथ ही खामोश मतदाता भी खेल कर सकते हैं। अब सूत्रों व जासूसों से मिले इनपुट के आधार पर कमजोर इलाकों में जुटे हैं।