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बमबारी के बीच बहादुरी, बुद्धि बल से बचाए 20 हजार भारतीय; ऑपरेशन गंगा की अनकही दास्तां

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आपको ‘एयरलिफ्ट’ फिल्म याद ही होगी। इसमें युद्ध का सामना कर रहे कुवैत से हजारों भारतीयों को बचाकर स्वदेश लाया गया था। कुछ इसी तरह युद्ध से जूझ रहे यूक्रेन से 20 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र और नागरिक बचाए गए हैं। लोगों की चुनौतियां और बचाव दल का साहस इस फिल्म से कई गुना रोमांचक है। एक फिल्मी पटकथा की तरह ‘ऑपरेशन गंगा’ में देशभक्ति, बहादुरी, पराक्रम, कौशल और रणनीति सबकुछ है। यह अभियान कितना खतरों से भरा था।

एयर इंडिया और वायुसेना के विमानों ने 87 से ज्यादा उड़ानें भरीं, 300 से ज्यादा घंटे लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युद्धग्रस्त राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों से पांच बार सीधी बात की। चार केंद्रीय मंत्री पोलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया में डेरा जमाए रहे। अपनों को बचाने के लिए भारतीय अधिकारी बमबारी के बीच युद्धग्रस्त क्षेत्रों में गए। तब कहीं जाकर वहां फंसे नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी कराई जा सकी। पूरे ऑपरेशन के जानकार सूत्रों ने बताया,सुमी में भारतीय छात्र जब सड़क मार्ग से सीमा की ओर जा रहे थे, तब दूसरी ओर रूसी सैनिकों का काफिला बिल्कुल करीब से निकल रहा था। कभी भी काफिले पर गोली चल सकती थी। लेकिन, मोदी ने रूस-यूक्रेन से सीधी बात कर नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। यह पहली बार था जब युद्धग्रस्त देश में शहरों के अंदर जाकर अभियान चलाया गया।

धमाकों के बीच हमें जिंदा निकाल लाए
‘ऑपरेशन गंगा’ के जरिये युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीयों को निकालने का सबसे साहसिक अभियान
पंकज कुमार पाण्डेय, नई दिल्ली। आपने विदेशी धरती से भारतीयों को ‘एयरलिफ्ट’ करने के कई अभियान देखे होंगे। लेकिन रूस से युद्ध के दौरान यूक्रेन से ‘ऑपरेशन गंगा’ के जरिये अपनों को निकालना अब तक का सबसे साहसिक अभियान है। छात्रों का कहना था कि धमाकों और गोलीबारी के बीच हमें जिंदा निकाला गया।

जानकारों के मुताबिक, सबसे ज्यादा जटिल स्थिति खारकीव और सुमी में थी। यहां तबाही का मंजर सबसे भयानक रूप ले रहा था। यहां एकदम आमने-सामने की लड़ाई चल रही थी। हर तरफ गोलीबारी और मिसाइल से हमले हो रहे थे। टैंक सामने थे। इन हालात में खरकीव में करीब 3000 और सुमी में करीब 800 भारतीय छात्र फंसे थे। तकरीबन 4000 छात्र रूस सीमा के करीब थे। सूत्रों के मुताबिक, यह पहली बार था जब मिसाइल हमलों और गोलीबारी के बीच अभियान चलाया गया।

मिशन में विलंब नहीं: निकासी अभियान में देरी पर सूत्रों ने कहा कि जनवरी में ही हमने अपने नागरिकों को नोटिस दिया था कि वे ऑनलाइन रजिस्टर कर दें कि वे कहां-कहां हैं। पहले अनुमान था कि शायद युद्ध की नौबत नहीं आएगी। लेकिन 15 फरवरी को जैसे ही लगा कि युद्ध नहीं टलेगा, भारत ने पहली एडवाइजरी जारी कर नागरिकों को यूक्रेन से निकलने को कहा। 20 फरवरी और 22 फरवरी को भी एडवाइजरी जारी की गईं।

यूक्रेन दे रहा था भरोसा: एडवाइजरी के बाद चार हजार छात्र व्यावसायिक उड़ानों से निकले। लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की दावा कर रहे थे कि कुछ नहीं होगा। भारतीय छात्र जिन संस्थानों में पढ़ रहे थे वहां सर्कुलर जारी करके कहा गया कि जनजीवन सामान्य है। इस भरोसे पर यूक्रेन के संस्थान ऑनलाइन कक्षा चलाने को तैयार हो गए। ऐसी तमाम वजह थीं, जिसकी वजह से तकरीबन सोलह हजार छात्र यूक्रेन में ही फंसे रह गए। सूत्र बताते हैं कि जब तक युद्ध या आपातस्थिति न हो , बचाव या अभियान शुरू करना उचित नहीं था।

यूएस से भी की दो टूक बात: सूत्रों ने कहा,बचाव अभियान के दौरान रूस दावा कर रहा था कि यूक्रेन ने छात्रों को बंधक बनाया हुआ है। वहीं, यूक्रेन कह रहा था कि रूस मानवीय गलियारा नहीं बनाने दे रहा है। इस पर हमने सख्त कूटनीति अपनाई। हमने अमेरिका से बात की और कहा कि अगर हमारे छात्र खतरे की जद मं आए तो यह एक तरह से शत्रुता होगी।

ज्यादातर भारतीय लौटे: सूत्रों ने कहा कि यूक्रेन से अब तक करीब 21 हजार से ज्यादा भारतीय स्वदेश आ चुके हैं। बचाव अभियान लगभग पूरा हो चुका है। जबकि अमेरिकी नागरिकों ने निकलने के लिए खुद इंतजाम किए।

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