You dont have javascript enabled! Please enable it! देहरादून का ‘मियांवाला’ – नाम से पैदा हुआ विवाद, लेकिन इतिहास कुछ और कहता है! - Newsdipo
June 17, 2025

देहरादून का ‘मियांवाला’ – नाम से पैदा हुआ विवाद, लेकिन इतिहास कुछ और कहता है!

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उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर नाम बदलने की हवा बह चली है—इस बार निशाने पर है देहरादून का ‘मियांवाला’। धामी सरकार के इस कदम को हिंदुत्व से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन सवाल यह है—क्या सच में ‘मियांवाला’ नाम की जड़ें किसी धार्मिक पहचान से जुड़ी हैं?

नाम में क्या रखा है? बहुत कुछ, जब बात इतिहास की हो।

वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की पड़ताल बताती है कि मियांवाला का नाम न तो किसी मुस्लिम शासक से जुड़ा है, न ही यहां किसी मस्जिद की मौजूदगी है। तो फिर ‘मियां’ शब्द कहां से आया?

मियां’—सम्मान का प्रतीक, जाति नहीं!

‘मियां’ शब्द आज भले ही मुस्लिम समाज में आम हो, लेकिन मियांवाला की कहानी कुछ और ही बयां करती है। यह नाम उस दौर की देन है जब गढ़वाल और टिहरी रियासतें हिमाचल की गुलेर रियासत से गहरे संबंध रखती थीं।

गुलेर से आए गुलेरिया राजपूत, जिनके वैवाहिक रिश्ते गढ़वाल-टिहरी की रानियों से थे, उन्हें राजाओं ने ज़मीनें और जागीरें दीं। देहरादून के निकट ‘मियांवाला’ उन्हीं जागीरों में से एक था। ‘मियां’ उपाधि इन सम्मानित राजपूतों को दी गई थी—न कि कोई धार्मिक लेबल।

जब रानी ने रियासत संभाली और बद्रीनाथ को पुनर्जीवित किया

इतिहास गवाह है, टिहरी की रानी, जो खुद गुलेरिया थीं, न सिर्फ एक कुशल प्रशासिका थीं बल्कि धार्मिक रूप से भी सक्रिय थीं। उन्होंने बद्रीनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और अंग्रेज़ी चालों को मात देकर अपने पुत्र कीर्ति शाह को गद्दी दिलाई। मियांवाला उसी साहसिक और सम्मानजनक इतिहास का प्रतीक है।

नाम में नहीं था मज़हब, न कोई मस्जिद का निशान

अगर मियांवाला का संबंध मुस्लिम समुदाय से होता, तो शायद वहां किसी मस्जिद की मौजूदगी होती। लेकिन आज भी मियांवाला में ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता। यह स्पष्ट करता है कि यहां ‘मियां’ का मतलब एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि राजसी सम्मान था।

मूल शब्द ‘मियां’ की जड़ें अरबी में, लेकिन इस्तेमाल भारत में खास

‘मियां’ शब्द भले ही अरबी से आया हो, जहां इसका अर्थ ‘महाशय’ या ‘श्रीमान’ होता है, लेकिन भारत में यह सिर्फ एक मज़हबी शब्द नहीं रहा। मुगल काल से लेकर राजपूत रियासतों तक, इसका उपयोग सम्मानित लोगों के लिए होता रहा है।

तो क्या मियांवाला का नाम बदलना इतिहास से आंखें चुराना है?

यह सवाल अब सिर्फ राजनीति का नहीं, पहचान और विरासत का भी है। मियांवाला का नाम सिर्फ एक जगह का नहीं, एक युग की याद है—जहाँ वैवाहिक रिश्तों से संस्कृतियां जुड़ती थीं, और ‘मियां’ एक सम्मान की गूंज थी, न कि किसी धर्म की पहचान।

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