भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर की सरकारों के साथ साझेदारी में समुद्री प्लास्टिक कचरे पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुद्री प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 14-15 फरवरी, 2022 को किया। इस वर्चुअल कार्यशाला के माध्यम से इस विषय के दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, नीति विशेषज्ञता वाले सरकारी अधिकारी, उद्योग, नवाचार और अनौपचारिक क्षेत्रों के प्रतिनिधि एक मंच पर आए। इसका उद्देश्य वैश्विक समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दे से निपटने के लिए समुद्री कचरे की निगरानी, मूल्यांकन और संभावित टिकाऊ समाधानों की दिशा में अनुसंधान संबंधी कदमों पर चर्चा करना है।
इस कार्यशाला में चार प्रमुख सत्र थे- समुद्री कचरे की समस्या की विशालता- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्लास्टिक के मलबे की निगरानी और अनुसंधान; सर्वोत्तम कार्य-प्रणालियां और प्रौद्योगिकियां; प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के उपाय; और पॉलिमर और प्लास्टिक: प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने या रोकने के लिए प्रौद्योगिकी व नवाचार और क्षेत्रीय सहयोग के अवसर। सत्र में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) देशों के प्रतिभागियों के बीच चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए पैनल डिस्कशन और इंटरैक्टिव ब्रेक-आउट सत्र शामिल थे।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा और आपसी भरोसा कायम करने का अग्रणी व प्रमुख मंच है। 2005 में स्थापना के बाद से ईएएस क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा, निकट क्षेत्रीय सहयोग और एशिया-प्रशांत एवं हिंद महासागर क्षेत्र की समृद्धि की हिमायत करता रहा है। ऐसे क्षेत्र और इलाके जो आपस में जुड़े हुए होते हैं और एक जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं, इनके बीच स्थायी ट्रांसबाउंड्री समाधान विकसित करने के लिए अपनी विशेषज्ञता के इस्तेमाल के लिए ईएएस को विशिष्ट रूप से रखा गया है। ईएएस चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में समाधान प्राप्त करने के दौरान मिली अपनी सीख को साझा करता है। ईएएस देश तटीय और समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती को पहचानते हैं। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवंबर 2019 में बैंकॉक में आयोजित 14वें ईएएस में व्यापक भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने के एजेंडे की घोषणा की थी। भारत, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया ईएएस निर्णयों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस कार्यशाला ने ईएएस देशों को समुद्री कचरे संबंधी चुनौतियों, प्रश्नों और समाधानों को तलाशने एवं इसके बारे में एक-दूसरे को सूचित करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस दौरान सभी ईएएस देशों को विशेष रूप से प्लास्टिक अनुसंधान, उपयोग, डिजाइन, निपटान, रिसाइक्लिंग, और प्लास्टिक मुक्त और स्वस्थ महासागर के लिए भविष्य की साझेदारियों के लिए प्रोत्साहित किया गया। चेन्नई के नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (एनसीसीआर), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस), सिंगापुर सरकार और ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान संगठन जैसे नॉलेज पार्टनर्स के माध्यम से इस दिशा में सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना ध्येय है। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने कार्यशाला में अपने मुख्य संबोधन में अपनी बात रखते हुए कहा किे समुद्री प्लास्टिक के फैलाव पर नजर रखने के लिए रिमोट सेंसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसे तकनीकी उपकरणों के अनुप्रयोग पर विचार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने हिंद महासागर क्षेत्र में प्लास्टिक से जुड़े विभिन्न आयामों को समझने के लिए मॉडल विकसित करने पर विचार करने का सुझाव दिया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि क्षेत्रीय विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए एक अच्छी तरह से डिजाइन और खास तौर पर तैयार प्रबंधन रणनीति पर्यावरण में प्लास्टिक को काफी कम कर देगी।