नई दिल्ली। देश में खाने के तेल की लगातार बढ़ रही कीमतों से महंगाई को थामने के प्रयासों को खतरा पैदा हो गया है। सरकार बीते साल आयात शुल्क में कटौती कर खाद्य तेल के दाम नीचे लाई थी, लेकिन इस साल फिर कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी होती दिख रही है।
• ब्लूमवर्ग के मुताबिक, इस साल अब तक पाम तेल की कीमतें रिकॉर्ड 15 फीसदी बढ़ चुकी हैं। सोयाबीन तेल के दाम 12 फीसदी बढ़ चुके हैं। इससे दुनियाभर में खाद्य उत्पादों की महंगाई दर ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। भारत पाम, सोयाबीन व सूरजमुखी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, इसलिए यहां व्यापक असर पड़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में दिसंबर में खाद्य उत्पादों की महंगाई छह महीने में तेजी से बढ़ी थी। इससे सरकार पर दबाव बढ़ गया है, जो पहले से ही 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है। सरकार ने पिछले साल कीमतों पर काबू पाने के लिए आयात शुल्क घटा दिया था, लेकिन इन प्रयासों का फिलहाल कोई असर नहीं दिख रहा है।
सरकार के पास एक ही रास्ता
गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री का कहना है कि सरकार के पास अब सीमित विकल्प बचे हैं। अगर वह आयात शुल्क में दोबारा कटौती करती है में तो इसका कीमतों पर फिलहाल असर नहीं दिखेगा। ऐसे में सरकार को रिफाइंड पाम तेल मंगाकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये कम कीमतों पर लोगों को बेचना चाहिए।
तेल भंडार बनाने से मिलेगी राहत
•सरकार को खाद्य तेल का रिजर्व भी बनाना चाहिए। महामारी का प्रकोप कम होने के बाद पाबंदियां हटने से खाद्य तेलों की मांग बढ़ रही है। निकट भविष्य में कीमतों के मोर्चे पर राहत की उम्मीद नहीं है। हालांकि, दूसरी छमाही से थोड़ी राहत मिल सकती है। -अजय केडिया, एमडी, केडिया एडवाइजरी