सुनपट आईएफएफआई में जगह पाने वाली उत्तराखंड की पहली फिल्म थी।

सुनपट वह अकेलापन है, जिसे हम और यहां तक कि प्रकृति व पहाड़ भी उस समय महसूस करते हैं, जब आसपास के सभी लोग कहीं चले जाते हैं। यह त्यौहार के एक मैदान में उस खालीपन की तरह होता है, जब उत्सव समाप्त होने के बाद भीड़ उस जगह को छोड़ देती है। अपनी गढ़वाली फिल्म सुनपट में निर्देशक राहुल रावत ने उत्तराखंड के घोस्ट विलेज (वैसा गांव जहां कोई नहीं रहता) में इस खालीपन और सन्नाटे को दिखाने की कोशिश की है, जो नौकरियों के लिए शहरी क्षेत्रों में अपने लोगों के पलायन के चलते बेजान हो गए।

राहुल रावत ने कहा, “लंबे समय से अवसरों की कमी के कारण उत्तराखंड के लोग देश के अन्य हिस्सों में पलायन कर रहे हैं। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण हुए इन पलायनों ने राज्य में लगभग 1500 घोस्ट विलेज बनाए हैं। 4000 से अधिक गांवों में बहुत कम लोग बचे हैं और इससे इन क्षेत्रों में समाज, संस्कृति और परंपरा दांव पर लगी हुई है। मैं यह कहानी कहना चाहता था और लोगों को बताना चाहता था कि पलायन कैसे मेरे राज्य में विनाश कर रहा है।”
इस फिल्म को बनाने के अपने अनुभव को साझा करते हुए रावत ने बताया कि यह फिल्म वास्तविक जीवन के लोगों से प्रेरित है, जिनसे वे पूरे राज्य में मुलाकात और उनसे बातचीत की। इस फिल्म के लिए कलाकारों को चुने जाने के बाद फिल्म की शूटिंग 20 दिनों में पूरी की गई।
हीं, इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर (डीओपी) वीरू सिंह बघेल ने शूटिंग को लेकर अपना अनुभव साझा किया किया। उन्होंने कहा, “हम सुबह जल्दी उठते थे और सूरज के प्रकाश की खोज में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ की ओर दौड़ना पड़ता था, क्योंकि पहाड़ों पर सूरज (प्रकाश) बहुत जल्दी चलता है। इस फिल्म की पूरी कास्ट और क्रू (कर्मीदल) उपकरणों को एक जगह से दूसरे स्थान पर ले जाने में सहायता करती थी। मैंने पूरी फिल्म 2 एलईडी लाइट्स पर शूट की। कुल मिलाकर यह एक शानदार अनुभव था।”

इस वार्ता में मौजूद फिल्म के सह-निर्माता रोहित रावत ने भी प्रतिनिधियों और मीडिया के साथ फिल्म बनाने के अपने अनुभव साझा किए।
सुनपट को गोवा में आयोजित भारत के 52वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भारतीय पैनोरमा गैर-फीचर फिल्म खंड में प्रदर्शित किया गया था और यह आईएफएफआई में जगह पाने वाली उत्तराखंड की पहली फिल्म थी।