पहाड़ के लोगों ने नकारे सबसे अधिक नेता
उत्तराखंड में मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले पहाड़ के लोग नोटा ( इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुनने में काफी आगे रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की 70 विधानसभा में रहने वाले 50 हजार से अधिक लोगों ने किसी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय नोटा का विकल्प चुना। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि 2022 चुनाव में भी नोटा विकल्प बड़े-बड़े दावे करने वाले दलों और उनके प्रत्याशियों की मुसीबत बन सकता है।
2012 तक जितने भी चुनाव हुए उनमें मतदाता को केवल प्रत्याशी चुनने का अधिकार ही था। ऐसे में जो लोग वायदों वाली राजनीति | से दूर रहते हैं और विकास देखना चाहते हैं उनमें से कई अक्सर चुनावों से किनारा कर लेते थे।
2013 में निर्वाचन आयोग ने देशभर के मतदाताओं को नोटा का भी विकल्प दिया । इस विकल्प का उपयोग कर वे लोग भी अपनी मनसा प्रकट कर सकते थे जिन्हें उनके क्षेत्र में चुनाव लड़ रहा कोई भी प्रत्याशी पसंद न हो। उत्तराखंड में विस चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प 2017 में प्रयोग में लाया गया। वोटिंग प्रक्रिया समाप्त होने के बाद जब परिणाम घोषित किया तो आंकड़ा चौकाने वाला था। 50408 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था। सबसे अधिक नोटा विकल्प पहाड़ की बागेश्वर, लोहाघाट, कपकोट, सोमेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत में मतदाताओं ने चुना था। वहीं गढ़वाल मंडल में रुद्रप्रयाग व थराली सीट पर हजारों लोगों ) ने नोटा विकल्प का प्रयोग कर अपनी मंशा जताई थी।