You dont have javascript enabled! Please enable it! उत्तराखंड में जनविरोध के बाद शराब की दुकानें होंगी स्थायी रूप से बंद 🚫🍷 - Newsdipo
July 21, 2025

उत्तराखंड में जनविरोध के बाद शराब की दुकानें होंगी स्थायी रूप से बंद 🚫🍷

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सरकार को 500 करोड़ का नुकसान, लेकिन जनभावनाओं को दिया प्राथमिकता 💰😡→❤️

देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए उन सभी शराब की दुकानों को स्थायी रूप से बंद करने का आदेश दिया है, जहाँ स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस कदम से सरकार को लगभग 500 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होने का अनुमान है, लेकिन सरकार ने जनता की भावनाओं को प्राथमिकता दी है।


क्यों हुआ विरोध? 👥✋

उत्तराखंड के कई इलाकों में नए वित्तीय वर्ष (2024-25) में खुलने वाली शराब की दुकानों के खिलाफ स्थानीय निवासियों, महिलाओं और युवाओं ने जोरदार विरोध किया। कई जगहों पर लोग धरने पर बैठ गए और अनिश्चितकालीन प्रदर्शन शुरू कर दिया।

📌 मुख्य शिकायतें:

  • शराब की दुकानों से बढ़ रही है असामाजिक गतिविधियाँ
  • महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को खतरा
  • गाँव/मोहल्ले की शांति भंग होना

इन्हीं विरोधों को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर सरकार ने विवादित शराब दुकानों को बंद करने का फैसला किया।


क्या है नई आबकारी नीति? 📜🍾

आबकारी आयुक्त हरि चंद्र सेमवाल ने 14 मई को सभी जिला अधिकारियों को पत्र भेजकर निर्देश दिया कि:

जहाँ भी स्थानीय लोग शराब की दुकानों का विरोध कर रहे हैं, वहाँ दुकानें स्थायी रूप से बंद की जाएँ।
लाइसेंस रद्द किए जाएँ और लाइसेंसधारकों को जमा राशि वापस की जाए।
आबकारी नीति-2025 के नियम 28.1 और 28.4 (ए) का पालन किया जाए।

इसके तहत अल्मोड़ा, देहरादून समेत कई जिलों में 4-5 विवादित दुकानें चिह्नित की गई हैं, जिन्हें अब बंद किया जाएगा।


सरकार को 500 करोड़ का झटका, लेकिन जनता खुश 💸😟 → 🙌

इस फैसले से सरकार को राजस्व में भारी नुकसान होगा। पिछले साल आबकारी से 4440 करोड़ का टारगेट था, जिसे इस साल 5060 करोड़ कर दिया गया था। लेकिन अब 500 करोड़ का घाटा होने का अनुमान है।

📊 राजस्व का हिसाब:

  • प्रस्तावित राजस्व: 2519 करोड़
  • सेटलमेंट: 2400 करोड़
  • हानि: ~500 करोड़

फिर भी, सरकार ने जनहित को ऊपर रखा, जिससे स्थानीय लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड सरकार ने जनता की आवाज़ सुनी और शराब की दुकानों पर रोक लगाकर सामाजिक सुरक्षा को प्राथमिकता दी। हालाँकि इससे राजस्व को नुकसान हुआ है, लेकिन यह फैसला लोकतांत्रिक और जन-केंद्रित माना जा रहा है।

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