You dont have javascript enabled! Please enable it! सुप्रीम कोर्ट का आदेश, सीधी भर्ती के पीसीएस ही रहेंगे सीनियर - Newsdipo
December 24, 2024

सुप्रीम कोर्ट का आदेश, सीधी भर्ती के पीसीएस ही रहेंगे सीनियर

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कोर्ट के आदेश का अनुपालन होगा । एक सप्ताह के भीतर निर्देशानुसार वरिष्ठता सूची फाइनल कर दी जाएगी। समय पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया जाएगा।
अरविंद सिंह ह्यांकी, सचिव कार्मिक

उत्तराखंड में 2002 बैच के सीधी भर्ती के पीसीएस अफसरों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फरवरी 2020 के आदेश को यथावत रखते हुए 2002 बैच के अफसरों को के प्रमोटी पीसीएस अफसरों से 2007 वरिष्ठ माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह में इस मामले में कार्रवाई करते हुए कोर्ट में जवाब दाखिल करने के आदेश सरकार को दिए हैं।

राज्य में 2010 में पीसीएस अफसरों की वरिष्ठता सूची जारी हुई थी। इसमें 2002 बैच के उन अफसरों को वरिष्ठता में ऊपर रखा गया, जो 2005 में चुनकर आए। इसके बाद 2007 के तहसीलदार से एसडीएम पद पर पदोन्नत हुए अफसरों को रखा गया। इस वरिष्ठता सूची को प्रमोटी पीसीएस अफसरों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में फैसला प्रमोटी पीसीएस अफसरों के पक्ष में आया। हाईकोर्ट के इस आदेश को सीधी भर्ती के पीसीएस अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में सीधी भर्ती के पीसीएस अफसरों के पक्ष में फैसला दिया। वर्ष 2010 की वरिष्ठता सूची को सही ठहराया। उत्तराखंड सरकार को कार्रवाई के निर्देश दिए। इस आदेश के बावजूद उत्तराखंड शासन के अफसरों ने वरिष्ठता सूची को घुमा कर रखा। कोई स्पष्ट आदेश नहीं किया। वरिष्ठता सूची को लटका कर रखा गया। कोई आदेश न होने पर सीधी भर्ती के पीसीएस अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। इस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया।

अब पीसीएस अफसर बन सकेंगे आईएएस

इस आदेश का लाभ सीधी भर्ती के 18 पीसीएस अफसरों को मिल सकेगा। वरिष्ठता सूची जारी होने के बाद इनकी डीपीसी आईएएस के पदों पर हो सकेगी। जो लाभ उन्हें 2013 में मिलना था, वो अब जाकर 2022 में मिल सकेगा। उत्तराखंड सचिवालय में प्रकरण उलझने के कारण सीधी भर्ती के इन अफसरों को वरिष्ठता का नुकसान उठाना पड़ा। वो भी तब जबकि 2010 में उत्तराखंड सचिवालय कार्मिक विभाग ने ही वरिष्ठता सूची फाइनल की थी। जिस पर फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी थी। इसके बाद भी सचिवालय में पूरे प्रकरण को उलझा कर रखा गया।

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